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अकेले

कल भी मन अकेला था, आज भी अकेला है।.       मेरे साथ लोगों ने कैसा खेल खेला है, कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। चाहते है अब खुशबू कागजी गुलाबों में ,प्यार सिर्फ मिलता है, आजकल किताबोें में। रिस्तें नाते झूँठे है सब स्वार्थ का झमेंला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। जाने क्यों लोगों ने ऐसा खेल खेला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। जिन्दगी के मंडप मेें हर खुशी क वाली है । किससे माँगने जायेें हर कोई भिखारी हैं। कहकहों के मेले में आँसुओ का रेला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है।.                            /\/\@/\//\.......

ज़िन्दगी ऐसे क्यो हैं...??

क्या ज़िन्दगी में यही सब होता है क्या ..? जिसे अपन चाहें या जिसे अपन पंसद करें।। चाहे वो कुछ भी हो सकता हैं। जरूरी ही नही की कोई आम व्यक्ति ही हो जिसे अपन पसन्द करे। पंसद तो कोई जॉब, गेम, जगह, व्यक्ति, गाना, अपने सपने आदि कई ऐसी चीजें होती है। मेने ये देखा हैं व महसूस भी किया की जिसे जो चीज पसन्द आने लगती हैं ।। और  उसे वो पाने की सोचता हैं तो वो उसे मिल नही पाती। ये तो सही बात है जिस चीज से जितना लगाव रखो वो उतना ही अपन से दूर हो जाती हैं।।