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अकेले

कल भी मन अकेला था, आज भी अकेला है।.       मेरे साथ लोगों ने कैसा खेल खेला है, कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। चाहते है अब खुशबू कागजी गुलाबों में ,प्यार सिर्फ मिलता है, आजकल किताबोें में। रिस्तें नाते झूँठे है सब स्वार्थ का झमेंला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। जाने क्यों लोगों ने ऐसा खेल खेला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है। जिन्दगी के मंडप मेें हर खुशी क वाली है । किससे माँगने जायेें हर कोई भिखारी हैं। कहकहों के मेले में आँसुओ का रेला है। कल भी मन अकेला था आज भी अकेला है।.                            /\/\@/\//\.......